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कोरोना से मुक्त होने पर भी चैन नहीं, करीब 40 फीसदी मरीज फिर अस्पताल के चक्कर लगा रहे

कोरोना से मुक्त होने पर भी चैन नहीं, करीब 40 फीसदी मरीज फिर अस्पताल के चक्कर लगा रहे

मुंबई के अस्पतालों में कोरोना वायरस के फॉलोअप मरीज़ों की संख्या बढ़ी, निगेटिव होने के बाद फेंफड़ों में फायब्रोसिस की तकलीफ़

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मुंबई: कोरोना वायरस (Coronavirus) पॉज़िटिव से निगेटिव हुए मरीज़ों को भी चैन नहीं है. मुंबई में निगेटिव होने के बाद भी मरीज़ लंग्स और हार्ट की बढ़ी समस्या के साथ बड़ी संख्या में अस्पतालों में रिपोर्ट कर रहे हैं.  ICU वाले मरीज़ एक से दो हफ़्तों में और वॉर्ड वाले क़रीब चार हफ़्तों में आ रहे हैं. फ़ॉलो मरीज़ों के उपचार के लिए प्राइवेट-सरकारी अस्पतालों में अलग इंतज़ाम किए जा रहे हैं.

कोरोना पॉज़िटिव से निगेटिव हुए मरीज़ों के सम्मान और ख़ुशी में तालियां बजती, फूलों की बरसात होती खूब देखी जाती है लेकिन यह रिपोर्ट ऐसे मरीज़ों को ज़रा निराश कर सकती है और ज़्यादा सावधानी के संकेत देती है. मुंबई शहर में कोरोना के मामले कम तो हो रहे हैं लेकिन पॉज़िटिव से निगेटिव हुए मरीज़ अब अस्पतालों के दोबारा चक्कर लगा रहे हैं. इनमें से ज़्यादातर को लंग्स फाइब्रोसिस की शिकायत परेशान कर रही है. यानी फेफड़े की ऐसी बीमारी जिसमें सांस फूलना, सूखी खांसी आना जैसे कुछ लक्षण हैं.

ऐसे दर्जनों मरीज़ों को देख रहे बॉम्बे अस्पताल से जुड़े डॉ गौतम भंसाली बताते हैं कि क़रीब 40% कोविड मरीज़ों में लंग फायब्रोसिस की समस्या देखी जा रही है. डॉ गौतम भंसाली ने कहा कि ‘फ़ॉलो अप मरीज़ निगेटिव होने के क़रीब एक महीने के बाद फिर से रिपोर्ट कर रहे हैं, फाइब्रोटिक लंग्स के साथ आ रहे हैं. पहले एक्सरे करते हैं, फिर सीटी स्कैन, पता चलता है काफ़ी मात्रा में फ़ायब्रोसिस है. दवा देते हैं, इलाज चलता है. लेकिन हां फ़ाइब्रोसिस बहुत ज़्यादा है मरीज़ों के अंदर. आंकड़े की बात करें तो 30-40% कोविड पेशेंट में लंग फ़ाइब्रोसिस डेवलप हो रहा है.’

शहर के बड़े अस्पतालों में शामिल सैफी अस्पताल के डॉ दीपेश अग्रवाल कहते हैं कि ICU से डिस्चार्ज हुए मरीज़ एक से दो हफ़्ते में लौट रहे हैं और वार्ड वाले मरीज़ क़रीब चार हफ़्तों में. जुलाई महीने से ऐसे फ़ॉलोअप मरीज़ों की तादाद बढ़ी है. डॉ दीपेश अग्रवाल ने बताया कि ‘यहां करीब 1100 मरीज़ भर्ती हुए. करीब 250 ICU में थे. ये जब डिस्चार्ज हुए तो इनमें फ़ॉलोअप पेशेंट ज़्यादा हैं. जुलाई महीने से रिपोर्ट कर रहे हैं. आईसीयू वाले एक दो हफ़्ते में आ रहे हैं. वार्ड वाले मरीज़ क़रीब चार हफ़्ते बाद. इन्हें फेफ़ड़े में सूजन होती है, दम लगता है, एक्सरसाइज़ कपैसिटी कम हो जाती है. इन्हें लंग फायब्रोसिस होता है. कुछ मरीज़ दिल की परेशानी भी लेकर आ रहे हैं.’

शहर के प्राइवेट से लेकर सरकारी अस्पतालों में कोविड के कारण लंग और हार्ट की समस्या वाले मरीज़ों की संख्या बढ़ी है. बढ़ते मामलों को देखते हुए अस्पतालों में ऐसे मरीज़ों की अलग व्यवस्था की जा रही है. तकनीकी तौर पर शायद ये कोरोना मरीज़ नहीं कहलाएंगे लेकिन इनकी परेशानियों की वजह कोरोना ही है. ऐसे में निगेटिव होने के बाद भी सांस की तकलीफ़ के बाद फ़ौरन जांच कराना, डाक्टर अनिवार्य बता रहे हैं.

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