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कोरोना संकटः कर्नाटक में ’18 अस्पतालों’ का इलाज से इनकार, मरीज़ की मौत के बाद नौ अस्पतालों को नोटिस

कोरोना संकटः कर्नाटक में ’18 अस्पतालों’ का इलाज से इनकार, मरीज़ की मौत के बाद नौ अस्पतालों को नोटिस

दिनेश सुजानी कुछ कहने की कोशिश करते हैं और फिर फफककर रोने लगते हैं.

आप उनसे पूछते हैंः क्या हुआ?

Image Courtesy बीबीसी

कुछ देर के लिए उन्हें संभालना मुश्किल लगता है और तब वे कहते हैं, “अब ये कहने का क्या मतलब रह गया है?”

लेकिन उनके पास ऐसा कहने की वजह है और ये बेज़ा भी नहीं है.

दिनेश सुजानी के बड़े भाई 52 वर्षीय भंवरलाल सुजानी कोरोना वायरस से संक्रमित थे और कोरोना पॉज़िटिव होने की जानकारी उनके मरने के बाद रविवार को सामने आई.

दिनेश का कहना है कि भारत के आईटी कैपिटल कहे जाने वाले बेंगलुरु शहर के ’18 अस्पतालों’ ने उनके बड़े भाई को दाख़िला देने से इनकार कर दिया था.

इससे एक दिन पहले दिनेश अपने भाई को स्कूटर पर लेकर घर से पांच किलोमीटर दूर एक अस्पताल ले गए. उनका घर बेंगलुरु के पुराने शहर में स्थित है.

नाइट क़र्फ्यू की वजह से न तो उन्हें ऑटोरिक्शा मिला और न ही टैक्सी.

ये कहते हुए दिनेश फिर रोने लगते हैं, “मैंने उनसे कहा कि उनकी नब्ज़ धीमी होकर 45-50 रह गई है. उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही है और वे उल्टियां भी कर रहे हैं. वे मेरे भाई को भीतर ले गए. उन्होंने एक्स-रे किया और फिर वे बाहर आए. उनके हाथों में कागज़ का एक पुरजा था जिस पर अंग्रेज़ी में कुछ लिखा था. उन्होंने मुझसे कहा कि इन्हें यहां से ले जाइए.”

दिनेश इस अस्पताल से अपने भाई को नज़दीक के दूसरे अस्पताल ले गए. यहां उन्हें आगे के लिए एंबुलेंस मिल गया था. इसके बाद उन्हें एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का दरवाज़ा खटखटाना पड़ा जिनमें सरकारी और प्राइवेट दोनों ही थे.

दिनेश सुजानी ने बीबीसी को बताया, “उन्होंने हमें दरवाज़े पर से ही लौटा दिया.”

दिनेश इस मुद्दे पर पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराना चाहते हैं. आंखों में आंसुओं के एक बार फिर लौटने से पहले उनकी आवाज़ बिखरने लगती है.

वे कहते हैं, “नहीं, नहीं. हम कुछ नहीं करना चाहते हैं.”

भंवरलाल सुजानी अपने पीछे चार बच्चों और पत्नी को छोड़ गए हैं. दो बेटियों की शादी हो चुकी हैं और दो बेटों में सबसे छोटा 22 साल का है. इस परिवार की रेडीमेड कपड़ों की एक दुकान शहर के उस इलाके में है जहां रहने वाले ज़्यादातर लोग कम आमदनी वाले तबके से हैं.

मरीज़ों के इलाज से इनकार कर रहे अस्पतालों की असंवेदनशीलता का शिकार होने वाले भंवरलाल सुजानी कोई पहले पहले शख़्स नहीं थे.

भले ही इन मरीज़ों में कोरोना संक्रमण के शुरुआत लक्षण रहे हों या फिर सांस लेने की तकलीफ़ के आख़िरी लक्षण.

मार्च के तीसरे हफ़्ते की शुरुआत से जब से इस देश में लॉकडाउन लगा है, कोरोना संक्रमित या संक्रमण की आशंका वाले मरीज़ों को अस्पतालों में भर्ती करने से इनकार करने की ख़बरें उत्तर में देश की राजधानी दिल्ली, पूरब में पश्चिम बंगाल, पश्चिम में मुंबई और दक्षिण में कर्नाटक और तेलंगाना से आती रही हैं.

भारत में कोरोना संक्रमण से मरने वाले पहले व्यक्ति को भी अस्पतालों के इस नए वर्क प्रैक्टिस के अनुभव से गुजरना पड़ा था जिसके तहत कोरोना संक्रमण की आशंका वाले मरीज़ों को भर्ती करने से इनकार किया जा रहा था. उस शख़्स को हैदराबाद और कलबुर्गी में अस्पतालों ने इलाज करने से मना कर दिया था.

देश भर के अस्पतालों में मरीज़ों को दाखिला देने से इनकार करने की जो वजहें बताई जा रही है, उनमें बहुत ज़्यादा फर्क नहीं है. भंवरलाल के मामले में इलाज करने से इनकार करने वाले पहले अस्पताल का कहना है कि कोविड के मरीज़ों के लिए जितने बेड रखे गए थे, वे सभी भरे हुए थे और उन्हें हॉस्पिटल के उसी वार्ड में एडमिट करना इसलिए भी वाजिब नहीं होता, अगर उनका कोरोना टेस्ट निगेटिव आता.

भगवान महावीर हॉस्पिटल के डिपार्टमेंट ऑफ़ इमर्जेंसी मेडिसिन एंड ट्रॉमा के नोडल ऑफ़िसर डॉक्टर निशांत हीरेमट कहते हैं, “अस्पताल के 360 बेड्स में हमने 45 बेड्स कोविड मरीज़ों के लिए रिज़र्व रखे हैं. और उन सभी बेड्स पर मरीज़ थे. क्योंकि इन बेड्स पर सभी मरीज़ कोरोना संक्रमित थे, इसलिए हम एक संदिग्ध कोरोना पेशेंट को उनके साथ नहीं रख सकते थे. अगर इस मरीज़ का कोरोना टेस्ट नेगेटिव आता तो ये हमारी जिम्मेदारी होती. इसलिए हमने ये तय किया था कि अगर हमारे पास कोई संदिग्ध कोरोना मरीज़ आएगा तो हमें उसके लिए दूसरा अस्पताल खोजना चाहिए.”

डॉक्टर निशांत भंवरलाल के परिवार के आरोपों से इनकार करते हैं कि उनके अस्पताल ने मरीज़ को देखा तक नहीं.

डॉक्टर निशांत ने बताया, “हमने उन्हें ऑक्सिजन दिया था. मरीज़ के लिए बुनियादी रूप से जो कुछ भी ज़रूरी था, हमने वो किया था.”

उन्होंने कहा, “हां, हमने उन्हें कहा था कि जहां कहीं भी दाखिला मिले, वो स्वैब टेस्ट (कोरोना जांच) करा लें. हम अपने मरीज़ों को नजदीक के एक सरकारी मंजूरी प्राप्त एक प्राइवेट लैब में टेस्ट के लिए भेजते हैं क्योंकि हमारे पास ऐसी सुविधा नहीं है. हमने उन्हें सरकारी अस्पताल जाने की सलाह दी थी.”

लेकिन अस्पताल मे मिले इलाज और सलाह से भंवरलाल और उनके परिवारवालों के लिए चीज़ें बदलने वाली नहीं थी और न ही उनकी तकलीफ़ कम होने वाली थी.

भंवरलाल के छोटे बेटे विक्रम को स्थानीय अख़बारों ने ये कहते हुए बताया कि वे लोग 18 अस्पताल गए, 32 हॉस्पिटल्स को फोन किया, शहर के एक छोर से दूसरे छोर को नाप डाला, 120 किलोमीटर की दूरी तय की.

लेकिन उनके पिता ने इन्हीं अस्पतालों में से एक के दरवाज़े पर अपनी आख़िरी सांसें लीं.

इसके एक दिन बाद राज्य सरकार ने इस मामले का संज्ञान लेते हुए नौ अस्पतालों को नोटिस जारी कर पूछा कि कर्नाटक प्राइवेट मेडिकल इस्टैबलिशमेंट्स एक्ट, 2017 और कर्नाटक डिजास्टर मैनेजमेंट एक्ट के प्रावधानों के तहत उन पर कार्रवाई क्यों न की जाए.

नोटिस पाने वाले अस्पातलों में एक सरकारी हॉस्पिटल भी है. राज्य के स्वास्थ्य आयुक्त पंकज कुमार पांडेय ने एक बयान जारी कर कहा, “प्राइवेट मेडिकल अस्पताल किसी कोरोना संक्रमित या ऐसे किसी मरीज़ जिनमें इसके लक्षण हों, का इलाज करने से न तो इनकार कर सकते हैं और न ही उन्हें नज़रअंदाज़ कर सकते हैं.”

इन अस्पतालों को जवाब देने के लिए 24 घंटे की मोहलत दी गई है.

पिछले कुछ दिनों में सरकार ने प्राइवेट सेक्टर के अस्पतालों से ख़ास तौर पर कोविड मरीज़ों के लिए बेड रिज़र्व करने के समझौते किए हैं.

जिस तरह से कोरोना संक्रमण के मामलों में अचानक तेज़ी देखी जा रही है, ख़ासकर पिछले हफ़्ते जितने कोरोना केस दर्ज किए गए हैं, उसे देखते हुए अस्पातलों में बड़ी संख्या में बेड्स की उपलब्धता सुनिश्चित कराने और सब्सिडी के मुद्दे को लेकर जारी बातचीत को जल्द पूरी किए जाने की ज़रूरत है.

दिल्ली, महाराष्ट्र और तमिलनाडु जैसे दूसरे राज्यों की तुलना में देखें तो कर्नाटक कोरोना लॉकडाउन के दौरान संक्रमण के मामलों पर नियंत्रण रखने में काफी हद तक कामयाब रहा था.

केरल के बाद संक्रमण पर काबू पाने को लेकर कर्नाटक की सराहना की जा रही थी.

लेकिन आठ जून को जैसे ही लॉकडाउन हटाया गया और महाराष्ट्र समेत दूसरे राज्यों से लोग कर्नाटक वापस लौटने लगे, राज्य में कोरोना संक्रमण के मामलों में तेज़ी से उछाल देखने को मिला. कर्नाटक लौटने वाले लोगों में बड़ी संख्या महाराष्ट्र से लौटने वालों की थी.

आठ जून को कर्नाटक में कोरोना संक्रमण के 308 मामले दर्ज किए गए थे और उस दिन तक राज्य में 64 लोगों की मौत हो चुकी थी.

एक जुलाई को राज्य में कोरोना पॉज़िटिव लोगों की संख्या 1272 दर्ज की थी जबकि उस दिन तक मरने वालों की संख्या बढ़कर 253 हो गई थी.

केवल बेंगलुरु के उदाहरण को ही लें तो आठ जून को इस शहर में संक्रमण के 18 मामले रिपोर्ट हुए थे जबकि एक जुलाई को ये संख्या बढ़कर 732 हो गई.

फेडरेशन ऑफ़ हेल्थकेयर एसोसिएशन ऑफ़ कर्नाटक के मुख्य संयोजक डॉक्टर एमसी नागेंद्र स्वामी ने बीबीसी को बताया, “प्राइवेट अस्पतालों में सरकार के लिए सात से साढ़े सात हज़ार बेड्स की व्यवस्था की गई है. इनमें ढाई हज़ार बेड्स प्राइवेट अस्पतालों में हैं और 4500 बेड्स प्राइवेट मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल्स में हैं. इसका मतलब हुआ कि कर्नाटक अगले एक महीने या उससे आगे की स्थिति के तैयार है.”

इसके साथ ही कर्नाटक के सरकारी अस्पतालों में उपलब्ध 3879 बेड्स को मिलाकर देखें तो इस समय राज्य के पास दस हज़ार से थोड़े ज़्यादा बेड्स कोरोना मरीज़ों के लिए उपलब्ध हैं.

डॉक्टर वी रवि नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज (निमहांस) में न्यूरो-वीरोलॉजी के प्रोफ़ेसर हैं.

अस्पतालों की क्षमता पर सवाल

उनकी राय में जुलाई-अगस्त में कोरोना संक्रमण के मामलों की सबसे ख़राब स्थिति आने की आशंका है. इसे देखते हुए संक्रमण के मामले जैसे-जैसे बढ़ेंगे बेड्स का ये इंतज़ाम मांग को पूरा करने के लिहाज से नाकाफी होगा.

“किसी व्यक्ति को जैसे ही फ्लू जैसे शुरुआती लक्षण दिखाई देते हैं, उसे फौरन कोरोना टेस्ट कराना चाहिए. अगर उसका कोरोना टेस्ट पॉज़िटिव आता है तो उसका इलाज कराया जा सकता है और उसकी जान बचाई जा सकती है. अगर कोई मरीज़ एक्यूट रेसपिरेटरी डिस्ट्रेस (सांस लेने में तकलीफ़ की सबसे ख़राब स्थिति) के लक्षणों के साथ आता है तो दुनिया का कोई भी डॉक्टर उसे बचा नहीं सकता. और वैसे संक्रमित लोग जिनमें कोरोना संक्रमण के कोई लक्षण नहीं है, उन्हें घरों में आइसोलेशन में रखा जाना चाहिए.”

डॉक्टर रवि कर्नाटक सरकार के विशेषज्ञों के पैनल में भी हैं.

पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया के महामारी रोग विशेषज्ञ डॉक्टर गिरिधर बाबू भी राज्य सरकार के इसी पैनल का हिस्सा हैं.

उन्होंने बीबीसी को बताया, “हमें गम्भीर रोगियों को पहले चिकित्सा देने की एक मजबूत व्यवस्था की ज़रूरत है. जैसे ही मामले बढ़ेंगे, हमें ये तय करने की ज़रूरत पड़ेगी कि किसे अस्पताल में भर्ती कराने ती ज़्यादा ज़रूरत है. मध्य वर्गीय परिवारों के जिन लोगों में कोरोना संक्रमण के हल्के लक्षण हैं, वे अपने घरों में आइसोलेशन में रह सकते हैं. केवल वही लोग जिनके घरों में आइसोलेशन में रहने के लिए अलग से कमरा नहीं है, उन्हें अस्पतालों में भर्ती कराया जाना चाहिए.”

डॉक्टर एमसी नागेंद्र स्वामी का कहना है, “अगर ज़्यादा लोग घरों में आइसोलेशन में रखे जाते हैं तो अस्पतालों में ज़्यादा बेड्स उपलब्ध होंगे. और जैसे ही सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में उपलब्ध कोरोना बेड्स के लिए एक हॉटलाइन तैयार कर ली जाएगी, कंट्रोल रूम के लिए ये किसी मरीज़ को ये बताना आसान होगा कि इस अस्पताल में बेड्स उपलब्ध हैं. ताकि किसी मरीज़ को एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल का चक्कर न लगाना पड़े.”

News Credit बीबीसी

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