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सुप्रीम कोर्ट बोला- बिना रस्मों के हिंदू विवाह मान्य नहीं:ये नाचने-गाने और खाने-पीने का इवेंट नहीं, न व्यापारिक लेन-देन है



सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि हिंदू विवाह कोई नाचने-गाने या खाने-पीने का मौका भर नहीं है। न ये कोई व्यापारिक लेन-देन है। जब तक इसमें रस्में नहीं निभाई जातीं, तब तक इसे हिंदू मैरिज एक्ट के तहत वैध नहीं माना जा सकता है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा कि हिंदू विवाह एक संस्कार और एक धार्मिक उत्सव है, जिसे भारतीय समाज के अहम संस्थान का दर्जा दिया जाना जरूरी है। कोर्ट ने यह बात दो कॉमर्शियल पायलट्स के तलाक के मामले की सुनवाई के दौरान कही, जिन्होंने वैध हिंदू विवाह सेरेमनी नहीं की थी। इन कमेंट्स के साथ बेंच ने संविधान के आर्टिकल 142 का हवाला देते हुए कहा कि दोनों पायलट्स कानून के मुताबिक शादीशुदा नहीं हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने उनके मैरिज सर्टिफिकेट को रद्द करार दे दिया। कोर्ट ने उनके तलाक की प्रक्रिया और पति व उसके परिवार पर लगाया गया दहेज का केस खारिज कर दिया। शादी के बंधन में बंधने से पहले अच्छे से सोच विचार करें युवा
बेंच ने कहा कि शादी कोई नाचने-गाने और खाने-पीने का इवेंट नहीं है। न ये कोई ऐसा मौका है जहां आप एक-दूसरे पर दबाव डालकर दहेज और तोहफों का लेनदेन करें, जिससे बाद में केस होने की संभावना रहे। विवाह कोई व्यापारिक लेन-देन नहीं है। हम युवा पुरुष और महिलाओं से कहना चाहते हैं कि शादी के बंधन में बंधने के पहले विवाह संस्थान के बारे में अच्छे से सोच लें और ये समझने की कोशिश करें कि ये संस्थान भारतीय समाज के लिए कितना पवित्र है। ये ऐसा गंभीर बुनियादी इवेंट है, जो एक पुरुष और महिला के बीच रिलेशनशिप को सेलिब्रेट करता है, जिन्हें पति-पत्नी का दर्जा मिलता है, जो परिवार बनाता है। यही परिवार भारतीय समाज की मूलभूत इकाई है। विवाह से न सिर्फ दो लोग अपनी मर्जी से साथ आते हैं, समुदाय भी एकजुट होते हैं
कोर्ट ने कहा कि विवाह एक पावन चीज है क्योंकि यह जीवन भर के लिए दो लोगों को आत्म सम्मान के साथ बराबरी का अधिकार देते हुए साथ लाता है। हिंदू विवाह संतान पैदा करने की अनुमति देता है, परिवार को जोड़ता है और अलग-अलग समुदायों के बीच भाईचारे की भावना को मजबूत करता है। कोर्ट ने कहा कि हम चलन की निंदा करते हैं, जिसमें युवा महिलाएं और पुरुष एक-दूसरे के पति-पत्नी का स्टेटस पाने के लिए हिंदू मैरिज एक्ट के तहत बिना विवाह संस्कार के कथित तौर पर शादी करते हैं। ठीक ऐसा ही दोनों पायलट्स के केस में हुआ, जो बाद में शादी करने वाले थे। कोर्ट बोला- विवाह में पति-पत्नी बराबर होते हैं
19 अप्रैल के अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि जहां हिंदू विवाह सप्तपदी जैसे सभी रीति-रिवाजों के साथ नहीं हुआ है, उसे हिंदू विवाह नहीं माना जा सकता है। कोर्ट ने कहा कि हमारा मानना है कि हिंदू विवाह पवित्र होता है। कोर्ट ने कहा कि सप्तपदी की बात करें तो, ऋगवेद के मुताबिक, सातवां फेरा पूरा होने पर दुल्हन दूल्हे से कहती है कि इन सात फेरों के साथ हम सखा बन गए हैं। मैं जीवनभर इस मित्रता के बंधन में रहूं, इससे कभी अलग न होना पड़े। पत्नी को अर्धांगनि कहते हैं पर उसे अपनी खुद की पहचान के साथ स्वीकार किया जाता है और वह विवाह में उसका बराबरी का हक होता है। विवाह में ‘बेटर हाफ’ जैसा कुछ नहीं होता है, बल्कि पति-पत्नी दोनों अपने आप में पूर्ण होकर साथ आते हैं। हिंदू मैरिज एक्ट में बहुविवाह प्रथा की जगह नहीं
कोर्ट ने आगे कहा कि हिंदू मैरिज एक्ट में बहुपति प्रथा, बहुविवाह प्रथा और इन जैसी अन्य प्रथाओं की कोई जगह नहीं है। संसद भी यही चाहती है कि अलग-अलग रीति-रिवाज और परंपराओं वाला एक ही प्रकार का विवाह होना चाहिए। इसलिए कई सदियों के गुजर जाने के बाद और हिंदू मैरिज एक्ट के लागू होने के बाद एक महिला के एक ही पुरुष से और एक पुरुष के एक ही महिला से विवाह को कानूनी तौर पर मान्यता दी गई है। बेंच ने कहा कि 18 मई, 1955 को लागू होने के बाद से इस कानून ने हिंदूओं में विवाह का एक कानून बनाया है। इसके तहत न सिर्फ हिंदू, बल्कि लिंगायत, ब्रह्मो, आर्यसमाज, बौद्ध, जैन और सिख आते हैं। जब तक दूल्हा-दुल्हन इन रस्मों से नहीं गुजरे हैं, तब तक हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 7 के तहत कोई हिंदू विवाह नहीं माना जाएगा और किसी अथॉरिटी की तरफ से एक सर्टिफिकेट मिलने से दोनों पार्टियों को शादीशुदा होने का स्टेटस नहीं मिलेगा, न इसे हिंदू मैरिज एक्ट के तहत शादी माना जाएगा। कोर्ट ने कहा कि मैरिज रजिस्ट्रेशन के फायदे ये हैं कि इससे किसी विवाद की सूरत में प्रूफ के तौर पर पेश किया जा सकता है, लेकिन अगर हिंदू मैरिज एक्ट के सेक्शन 7 के तहत शादी नहीं हुई है, तो रजिस्ट्रेशन करा लेने से विवाह को मान्यता नहीं मिल जाएगी। ये खबरें भी पढ़ें… क्या इस्लाम न मानने वालों पर शरिया कानून लागू होगा?:मुस्लिम महिला बोली- धर्मनिरपेक्ष कानून मानना चाहती हूं; सुप्रीम कोर्ट में जुलाई में सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल को एक याचिका पर सुनवाई के लिए सहमति जताई, जिसमें कहा गया था कि अगर कोई व्यक्ति मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत नहीं आना चाहता, तो क्या उसे देश के धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत रखा जा सकता है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और मनोज मिश्रा की बेंच ने इस याचिका पर चर्चा करने के बाद केंद्र और केरल सरकार को नोटिस जारी किया है। बेंच ने अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया आर वेंकटरमणी से कहा है कि एक लॉ ऑफिसर को अपॉइंट करें। बेंच इस मामले की सुनवाई जुलाई के दूसरे हफ्ते में करेगी। पूरी खबर यहां पढ़ें… SC ने नाबालिग रेप विक्टिम के अबॉर्शन का आदेश पलटा:पेरेंट्स ने कहा- बेटी की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है, हम बच्चे को पालेंगे सुप्रीम कोर्ट ने 14 साल की रेप विक्टिम को 30 हफ्ते की प्रेग्नेंसी में अबॉर्शन की इजाजत देने वाला फैसला पलट दिया है। कोर्ट ने 22 अप्रैल को लड़की के अबॉर्शन की इजाजत दी थी। कोर्ट ने ये फैसला लड़की के माता-पिता के अनुरोध के बाद पलटा। लड़की के पेरेंट्स ने कहा कि इस प्रोसिजर से उनकी बेटी की जिंदगी को खतरा हो सकता है। उन्होंने ये भी कहा कि हम बच्चे को पालने के लिए तैयार हैं। पूरी खबर यहां पढ़ें…


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