हाल ही में सरकार ने आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों (Ayurveda Doctors) को 58 सामान्य सर्जरी प्रक्रिया की ट्रेनिंग दिए जाने की अनुमति दे दी है.
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सर्जरी (Sugery) आधुनिक मेडिकल साइंस का हिस्सा है और क्या इसे आयुर्वेद के साथ मुख्यधारा में लाया जा सकता है? इसका डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन कड़ा विरोध कर रही है. दरअसल, हाल ही में सरकार ने आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों (Ayurveda Doctors) को 58 सामान्य सर्जरी प्रक्रिया की ट्रेनिंग दिए जाने की अनुमति दे दी है. आयुर्वेदिक डॉक्टर कहते हैं सामान्य सर्जरी तो ये पहले भी कर रहे थे, 58 सर्जरीज़ का दायरा अब तय हुआ है. बहरहाल, केंद्र सरकार की इस अधिसूचना पर डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) बड़ा विरोध प्रदर्शन करने जा रही है. दरअसल इस सरकारी पत्र में केंद्र सरकार ने आयुर्वेद के पोस्ट ग्रेजुएट डॉक्टरों को 58 सामान्य सर्जरी प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए ट्रेनिंग दिए जाने की अनुमति दे दी है. डॉक्टरों की सबसे बड़ी संस्था ‘इंडियन मेडिकल एसोसिएशन’ की महाराष्ट्र इकाई ने इसके खिलाफ प्रदर्शन का ऐलान कर दिया है. इस संबंध में 11 दिसंबर को डॉक्टरों ने हड़ताल की घोषणा की है.
IMA महाराष्ट्र के अध्यक्ष डॉ अविनाश भोंडवे कहते हैं, ‘’सेंट्रल काउंसिल ऑफ़ इंडियन मेडिसिन का दावा है कि ये ओरिजनल आयुर्वेदिक सर्जरीज़ हैं, उन्होंने इसे कोई संस्कृत नाम भी दिए हैं, लेकिन ये सारी मॉडर्न साइंस से ली हुईं सर्जरीज़ हैं, इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर हम इसका विरोध कर रहे हैं. इसका असर उन तमाम मेडिकल छात्रों पर होगा जो डिग्री पाने के लिए कड़ी मेहनत करते हैं. महाराष्ट्र में सरकारी-प्राइवेट के 20 हज़ार मेडिकल स्टूडेंट आज से ही इस फ़ैसले का विरोध शुरू कर रहे हैं.”
दूसरी ओर, आयुर्वेद कॉलेज सायन में 58 सर्जरी के बने सरकारी दायरे से खुशी है. 1954 में बने मुंबई के आयुर्वेद कॉलेज सायन में कई सामान्य सर्जरीज़ होती आई हैं, ट्रस्टी का कहना है की सर्जरीज़ का अधिकार तो पहले से था पर तय नहीं, अब 58 सर्जरी के बने सरकारी दायरे से ख़ुश हैं. आयुर्वेद कॉलेज सायन के ट्रस्टी डॉ मंगिरीश रंगनेकर कहते हैं कि ‘’आयुर्वेद के पोस्ट ग्रैजुएट डॉक्टर जो रुरल इलाक़े, पिछड़े इलाक़ों में काम करने वाले आयुर्वेदा डॉक्टर हैं ये सवाल बार बार उनके ख़िलाफ़ उठता रहा की की आपको सर्जरी का अधिकार है की नहीं, जबकि उनको राइट्स थे लेकिन ये डिफ़ाइंड नहीं था की कौन कौन सी सर्जरी के राइट्स हैं वो तो बेसिक सर्जरीज़ करते थे, ((पैच)) 79 का जो हमारा ऐक्ट प्रोविज़न था सर्जरीज़ का जो यूनिवर्सल था उसको एक दायरे में लाकर तय कर दिया की इन 58 के अलावा हमारे आयुर्वेद डॉक्टर कोई और सर्जरी नहीं कर पाएँगे.((पैच-दूसरा क्लिप)) मैं मेरे एलोपेथिक भाइयों को कहूँगा की नेगेटिविटी छोड़ के साथ आएँ, अगर क्वालिटी इम्प्रूव करने के लिए सुझाव हैं तो ज़रूर हम ओपन हैं लेकिन सिर्फ़ विरोध करने के विरोध करना ग़लत है.”
वैसे क़ानून के जानकार भी सरकारी क़दम को जल्दबाज़ी में लिया फ़ैसला बता रहे हैं. वकील श्रीराम परक्कत ने कहा, ‘’मुझे लगता है कि जल्दबाज़ी में यह फ़ैसला लिया गया क्योंकि सर्जरी सिर्फ़ आयुर्वेदिक मेडिसिन के दम पर नहीं होती, इसमें एलोपैथिक एनेस्थीशिया की ज़रूरत पड़ती हैं, एलोपेथिक पोस्ट सर्जिकल केयर की ज़रूरत पड़ती है, ऐसे में एक मरीज़ को आयुर्वेदिक और एलोपैथी के मिक्स एंड मैच में डालना गलत है.” आयुर्वेद, आधुनिक तकनीक के तालमेल से आगे बढ़ने की कोशिश में है, सरकारी मुहर से शायद मदद भी मिलेगी लेकिन यह सवाल अभी तक अनुत्तरित है कि क्या ये इतना आसान होगा?
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