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उद्धव के खिलाफ अपमानजनक ट्वीट पर हाईकोर्ट ने कहा, ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं कर सकती’

उद्धव के खिलाफ अपमानजनक ट्वीट पर हाईकोर्ट ने कहा, ‘फ्रीडम ऑफ स्पीच दूसरे के अधिकारों का हनन नहीं कर सकती’

अदालत ने सरकारी वकील से कहा, ‘‘हमारा मानना है कि जब 41-ए के तहत नोटिस जारी किया गया है तो गिरफ्तारी की कोई आवश्यकता नहीं है.’’

मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है, लेकिन इससे किसी व्यक्ति को दूसरों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करने का लाइसेंस नहीं मिल सकता. न्यायमूर्ति एस एस शिन्दे और न्यायमूर्ति एम एस कार्णिक की पीठ समीत ठक्कर नामक व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और उनके मंत्री पुत्र आदित्य ठाकरे के खिलाफ अपने ट्वीटों के कारण दर्ज हुई प्राथमिकी को निरस्त करने का आग्रह किया था. मुंबई स्थित वी पी मार्ग थाने में ठक्कर के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की गई है.

ठक्कर के वकील अभिनव चंद्रचूड़ ने दलील दी कि संविधान प्रत्येक व्यक्ति को सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों, यहां तक कि प्रधानमंत्री की आलोचना करने का भी अधिकार देता है. पीठ हालांकि इस तर्क से सहमत नहीं हुई. इसने कहा कि लोकतंत्र में किसी भी व्यक्ति को अपने विचार व्यक्त करने की स्वतंत्रता है, लेकिन इससे किसी व्यक्ति को दूसरों के संवैधानिक अधिकारों का हनन करने का लाइसेंस नहीं मिल सकता.

अतिरिक्त लोक अभियोजक एस आर शिन्दे ने कहा कि ठक्कर ने नोटिस जारी होने के बाद भी पुलिस के समक्ष अब तक अपना बयान दर्ज नहीं कराया है. अधिवक्ता चंद्रचूड़ ने कहा कि उनका मुवक्किल बयान दर्ज कराना चाहता है, लेकिन वह गिरफ्तारी के डर से ऐसा नहीं कर रहा.

अदालत ने सरकारी वकील से कहा, ‘‘हमारा मानना है कि जब 41-ए के तहत नोटिस जारी किया गया है तो गिरफ्तारी की कोई आवश्यकता नहीं है.” दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 41-ए के तहत ऐसे नोटिस तब जारी किए जाते हैं जब आरोपी की गिरफ्तारी आवश्यक न हो और सजा सात साल से कम की हो.

अदालत ने ठक्कर को निर्देश दिया कि वह पांच अक्टूबर को पुलिस के समक्ष पेश हो. इसने सरकार से कहा कि यदि पुलिस ठक्कर के खिलाफ किसी अतिरिक्त आरोप में मामला दर्ज करती है जिसमें गिरफ्तारी की जरूरत हो तो इस बारे में अदालत को सूचित किया जाए.

News Credit NDTV

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