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मौत के बाद डिजिटल पहचान ‘जिंदा’ कर सकता है डेटा:इसे रोकने की तैयारी नहीं; यूजर्स कंपनी पर दबाव बनाएं



इन दिनों हमारे जीवन का बड़ा हिस्सा ऑनलाइन है। लेकिन जब हम इस दुनिया में नहीं रहेंगे तब हमारे डेटा या डिजिटल निशानियों का क्या होगा, इसका जवाब किसी के पास नहीं है… यह कहना है स्वीडन की उप्साला यूनिवर्सिटी के प्रो. कार्ल ओमान का। ‘द ऑफ्टरलाइफ ऑफ डेटा…’ किताब में ओमान ने लिखा है कि हमारे द्वारा छोड़ी गई निशानियों से मृत्यु के बाद हमारी डिजिटल पहचान दोबारा बनाई जा सकती है। वे पड़ताल करते हैं कि इस डेटा का क्या करें? हमारी डिजिटल जिंदगी अपनी है? अगर नहीं, तो हमारे डेटा के साथ क्या होता है, यह तय करने का अधिकार किसके पास हो? उन्होंने समाधान तलाशने की कोशिश की है, पढ़िए… एआई मॉडल्स को प्रशिक्षित करने के लिए उपयोग हो सकता है डेटा अपनी स्टडी के दौरान मैंने कैल्कुलेट किया कि तीन से चार दशक में, फेसबुक पर जीवित यूजर्स की तुलना में मृत लोगों की संख्या ज्यादा होगी। यह उन सोशल मीडिया कंपनियों के लिए बड़ी चुनौती है, जो विज्ञापनों पर क्लिक करने के लिए हम पर निर्भर है। क्योंकि मृत लोग तो एड पर क्लिक करेंगे नहीं। यह विज्ञापन पर आधारित इकोनॉमी के लिए गंभीर खतरा है। चिंता- मस्क व जकरबर्ग जैसे लोग तय करेंगे कि अतीत को कैसे समझा जाए चिंता इसलिए भी बड़ी है क्योंकि एआई टेक्नोलॉजी हमें दिवंगत लोगों के साथ ‘बात’ करने में सक्षम बना रही है। अमेजन ऐसे फीचर पर काम कर रही है, जिससे उसके वर्चुअल असिस्टेंट एलेक्सा को मृत रिश्तेदार की आवाज में बोलने के लिए प्रोग्राम किया जा सके। स्टार्टअप मृतकों के चैटबॉट बनाने के लिए डेटा इस्तेमाल कर रहे हैं। चूंकि मृत लोगों के पास डेटा प्राइवेसी का अधिकार नहीं होता, ऐसे में यह डेटा एआई मॉडल के लिए ट्रेनिंग डेटा के रूप में कॉमर्शियल वैल्यू के रूप में अहम हो सकता है। कंपनियां इसे एक तरह की ‘विरासत के रूप में सेवा’ डील में वंशजों को बेच सकती है। इस डेटा पर जो भी नियंत्रण रख रहा है, वह इसे कैसे इस्तेमाल करेगा, इस पर कोई निगरानी नहीं होगी। उदाहरण के लिए मी टू कैंपेन से जुड़े सभी ट्वीट के मालिक अब इलॉन मस्क हैं। यानी जब भविष्य के इतिहासकार अतीत को समझने की कोशिश करेंगे, तो शर्तें तय करने का अधिकार मस्क और जकरबर्ग जैसे लोगों के पास होगा। वे पूरा डेटा डिलीट कर सकते हैं। क्योंकि इसे संभालना उनके लिए खर्चीला सौदा होगा। कंपनियों के पास इसकी कोई तैयारी नहीं है। क्या कर सकते हैं… सोशल मीडिया कंपनियों या किसी एक व्यक्ति के पास हमारे डिजिटल अवशेषों का अधिकार नहीं होना चाहिए। ​यह सुनिश्चित हो कि हमारे न रहने पर व्यवस्थित तरीके से इस डेटा को खत्म किया जा सके। जिस तरह यूनेस्को विश्व विरासत के लिए नियम तय करता है, वैसे ही नियम डेटा के लिए भी बनें। आर्काइव बना सकते हैं, इससे किसी एक व्यक्ति के पास कंट्रोल नहीं रहेगा। एक दशक के भीतर ही इसके लिए बुनियादी ढांचा होना चाहिए अन्यथा बहुत देर हो जाएगी।’


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